Search This Blog

अथर्ववेद



अथर्ववेद हिन्दू धर्म के पवित्रतम वेदों मे से एक है अथर्ववेद की सहिंता अथवा मंत्र भाग है इस वेद की भाषा व स्वरूप के आधार पर ऐसा माना जाता है कि इसकी रचना अंत मे हुई है अथर्ववेद की रचना अथर्वा तथा आंगिरस के द्वारा की गयी इसलिए अथर्ववेद को अथर्वागिरस भी कहा जाता है इसके अलावा भी अथर्ववेद को कई अन्य नामो से जाना जाता है जैसे गोपथ, ब्राह्मण मे इसे अथर्वागिरस के नाम से जाना जाता है ब्रम्ह विषय मे इसे ब्रह्मवेद तथा आयुर्वेद, चिकित्सा, औषिधियों आदि के वर्णन होने के कारण भैषज्य वेद भी कहा जाता है । अथर्ववेद का उपवेद "शिल्पवेद" है ।



अथर्ववेद की विशेषताएँ

·     अथर्ववेद मे 20 मण्डल 731 सूक्त तथा 5839 मंत्र  हैं               
·     अथर्ववेद की इन रचना करने वाले ऋषि को ब्रह्मा कहा जाता है     
·     इस वेद मे आयुर्वेद, चिकित्सा, औषिधियों तंत्र-मंत्र, जादू टोना, रोगनिवारण तथा वशीकरण जैसे बिषयों का वर्णन है ।         
·    अथर्ववेद मे ऋग्वेद व सामवेद से भी मंत्र लिए गए हैं                    
·     अथर्ववेद में परीक्षित को कुरुओं का राजा कहा गया है ।  
·     धर्म ग्रंथ रामायण, महाभारत और गीता की भांति ही अथर्ववेद मे भी लड़ाइयों का अत्याधिक विवरण हुआ है ।                            
·    अथर्ववेद में ऐसा विषय जिसका वर्णन बार-बार हुआ है वह आयुर्विज्ञान है       
·     ज्ञान से श्रेष्ठ कर्म करते हुए जो परमात्मा की उपासना में लीन रहता है वही अकंप बुद्धि को प्राप्त होकर मोक्ष धारण करता है। 
   इसके खण्ड आठ हैं जिनमें भेषज वेद और धातु वेद ये दो नाम मिलते हैं।
                                      


अथर्ववेद में ऐसे कार्य करते थे मंत्र

ॐ नमः शिवाय’ -स्वास्थ्य लाभ और मानसिक शांति के लिए।
ॐ शांति प्रशांति र्सव क्रोधोपशमनि स्वाहा -क्रोध शांति के लिए।
ॐ हृीं नमः’ – धन प्राप्ति के लिए।
ॐ हृीं श्रीं अर्ह नमःविजय प्राप्ति के लिए।
ॐ क्लिीं ऊँ’ – कार्य की रुकावट दूर करने के लिए।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ – आकस्मिक दुर्घटना से बचाव के लिए।
ॐ गं गणपतये नमः’ – व्यापार लाभ, संतान प्राप्ति, विवाह एवं समस्त कार्यो के लिए।
ॐ हृीं हनुमते रुद्रात्म कायै हुं फटः’ – पद वृद्धि के लिए।
ॐ हं पवन बंदनाय स्वाहा’ – प्रेत बाधा से मुक्ति के लिए।
ॐ भ्रां भ्रीं भौं सः राहवे नमः’ – पारिवारिक शांति के लिए।                          अथर्वा ऋषि के अनुसार प्रतिदिन प्रात: व सायंकाल सूर्योपासना करें और ॐ रवये नम: के साथ साथ कम से कम 50-60 बार सूर्य की ओर मुंह करके सूर्य ध्यान के साथ तालियां बजाएं। इस मंत्र का 51 बार प्रतिदिन जाप करें  
                
ॐ विश्वानि देव सवितुर्दुरितानिपरासुव: यत् भद्रं तन्न: आसुव:।।

इसी प्रकार सूर्य स्तोत्रम् के पाठ भी काफी लाभकारी सिद्ध होते हैं।                                


 


No comments:

Post a Comment

ईसाई धर्म

ईसाई धर्म के प्रवर्तक ईसा मसीह थे इनका जन्म बेथलहम मे हुआ था इनके अन्य नाम जैसे जीजस क्राइस्ट , यीशु मसीह थे . इनकी माता का नाम मरियम ( ...