ईसाई धर्म के प्रवर्तक ईसा
मसीह थे इनका जन्म बेथलहम मे हुआ था इनके अन्य नाम जैसे जीजस क्राइस्ट,
यीशु मसीह थे. इनकी माता का नाम मरियम ( मैरी) व पिता का नाम युसुफ
(जोसेफ) था. यीशु के जन्म से संबन्धित जानकारी हमे बाइबल से मिलती है. बाइबल ईसाई
धर्म का धार्मिक ग्रंथ है इसाइयों का “नया नियम” व यहूदियों के “पुराना
नियम” उनके धर्म ग्रंथ “तनख” को एक साथ मिलाया गया व उसी ने बाइबल का रूप लिया। बाइबल
के अनुसार यीशु की माता मरियम इज़राइल के गलिलिया क्षेत्र के नाजरेथ नामक गाँव मे
रहती थी. माना जाता है कि ईश्वरीय प्रभाव से विवाह पृर्व ही मरियम ( जब कुँवारी थी ) गर्भवती हो गयी थी। उसके बाद
उनका विवाह युसुफ से हुआ व मरियम और युसुफ विवाह पश्चात गलिलिया छोडकर बेथलहम नामक
नगर मे जाकर रहने लगे जहां यीशु का जन्म हुआ इसके पश्चात युसुफ इज़राइल के राजा के
अत्याचार से मिश्र मे जाकर रहने लगे व कुछ समय पश्चात वापस नाजरेथ गाँव चले गए। ईसाई
धर्म को मानने वाले यीशु को परमेश्वर का पुत्र मानते हैं जो सभी मनुष्यों को पाप और
मृत्यु से बचाने के लिए मनुष्य का रूप धारण कर इस पृथ्वी पर आए हैं। यीशु के जन्म
से 29 वर्ष तक कोई जानकारी नहीं मिलती पर माना जाता है कि 30 वर्ष की उम्र मे
उन्होने योहान्ना से शिक्षा ग्रहण की.
व तत्पश्चात वह भी अपने पिता के साथ बढ़ई का
काम करने लगे। उस समय समस्त यहूदी जाति रोमन सम्राट के अधीन थी व यहूदी इस गुलामी
से आजादी के लिए अपने प्रभु की राह देख रहे थे उस समय यीशु ने बढ़ई का काम छोड़ दिया
व लोगों मे ज्ञान बांटने लगे। यीशु को लोगों ने बढ़ई का काम करते हुए देखा था लोगों
को आश्चर्य हुआ और लोग अनुभव करने लगे की यीशु सरल भाषा मे दैनिक जीवन के मौलिक
आधारों की शिक्षा दे रहे थे।
ईसाई धर्म की शिक्षाएं
ईश्वर एक है, ।
ईसाई
धर्म के अनुसार जीव हत्या, अनावश्यक
हरे पेड़ों की कटाई ,किसी को
व्यर्थ आघात पहुँचाना, व्यर्थ
जल बहाना, आदि पाप है। उसमें
विश्वास रखना चाहिए। ईश्वर के प्रति समर्पण कर चारित्रिक गुणों का विकास करना
चाहिए। जन सेवा व जनकल्याण के लिए मनुष्य को अपना जीवन लगा देना चाहिए। सेवा, प्रेम व परोपकार अमूल्य धरोहर है, यह धरोहर जिसके पास है उसके लिए प्रभु के राज्य में जगह
है। दुखियों की सेवा सच्ची ईश्वर सेवा है। क्रोध व ईर्ष्या जैसे दुर्गुणों को छोड़
देना चाहिए। यह भावना सच्चे मानव के निर्माण में सहायक होती है। मनुष्य प्रेम ही
ईश्वर प्रेम है और मनुष्य की सेवा ही ईश्वर की सेवा है। शुद्ध हृदय से प्रायश्चित
करने पर ईश्वर पापी को भी क्षमा कर देता है
यीशु के शिष्य
- पीटर
- एंड्रयू
- जेम्स
(जबेदी का बेटा)
- जॉन
- फिलिप
- बर्थोलोमियू
- मैथ्यू
- सेंट थॉमस
- जेम्स
(अल्फाइयूज का बेटा)
- संत जुदास
- साइमन द
जिलोट
- मत्तिय्याह
ईसाई धर्म के
प्रवर्तक ईसा मसीह को इसलिए प्राणदंड दिया कि वह मसीह तथा ईश्वर का पुत्र होने का
दावा करते हैं। रोमन गवर्नर ने उन्हे सूली पर लटकाने का आदेश दिया था। व तत्पश्चात
उन्हे दफनाया गया था। कहा जाता है कि 3 दिन बाद उनकी कब्र खाली मिली थी व यीशु
पुनर्जीवित होकर अपने शिष्यो को दिखाई देने लगे। उस समय यीशु ने अपने शिष्यों को
समस्त संसार मे जाकर धर्म का प्रचार करने का आदेश दिया। ये माना जाता
है उसके बाद यीशु के 12 शिष्यों मे से एक
सेंट थॉमस भारत आए व केरल मे बस गए। साथ ही कुछ दूसरे धर्म के लोगों को भी ईसाई धर्म स्वीकार
करने के लिए राजी किया भारत आने के बाद सेंट थॉमस ने कई चर्च बनावाए. व
तत्पश्चात वह धर्म प्रचार के लिए चेन्नई चले गए कहा जाता है चेन्नई के लोगों ने
धर्म स्वीकार नहीं किया व उनका विरोध किया व कुछ समय पश्चात चेन्नई मे ही उनकी
मृत्यु हो गयी। कई वर्षो के बाद जब पुर्तगाली भारत आए उन्होने इसी जगह पर गिरिजाघर
की स्थापना की जो आज “सेंट थॉमस माउंट” के नाम से प्रसिद्ध है.
ईसाई धर्म के कुछ मुख्य तथ्य
ईसा मसीह जा जन्मदिवस 25 दिसंबर
यानि क्रिसमस के दिन मनाया जाता है
ईसा मसीह को सूली पर रोमन गवर्नर पोंटियस ने
चढ़ाया था.
ईसाई धर्म का सबसे पवित्र चिह्न क्रॉस है.
ईसा मसीह के पहले
दो शिष्य थे पीटर और एंड्रयू.
वे ईश्वर को त्रीएक के रूप में समझते हैं-
परमपिता परमेश्वर, उनके पुत्र ईसा मसीह (यीशु मसीह) और पवित्र आत्मा.
कैथोलिक, प्रोटैस्टैंट, आर्थोडॉक्स, मॉरोनी, एवनजीलक. नामक इसाइयों के समुदाय
हैं
https://incrediblefactsofindianculture.blogspot.com
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