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वैदिक युग


वैदिक काल ( वैदिक युग )                                                                            
प्राचीन भारतीय संस्कृति अथवा वैदिक संस्कृति प्राचीन काल से गौरवपूर्ण तत्वों से अभिण्डित था इस सांस्कृतिक रूपरेखा को समझने के लिए विकास की रूपरेखा को समझने के लिए प्राचीन भारत की ओर दृष्टिपात करने पर हम देखते हैं की भारतीय साहित्य शास्त्र, ज्ञान-विज्ञान, कलाए,धर्म दर्शन आदि ऐसा कोई भी तत्व नहीं है जिसकी स्पष्ट रूपरेखा वैदिक साहित्य में न मिले । इस प्रकार वैदिक संस्कृति एक ओर जहां प्राचीनतम सिद्ध होती है वहीं पूर्णतम संस्कृति भी है। वैदिक साहित्य में चार वेद एवं उनकी संहिताओं, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषदों एवं वेदांगों को शामिल किया जाता है।                                     वेदों की संख्या चार है- ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद।
ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद विश्व के प्रथम प्रमाणिक ग्रन्थ है।
वेदों को अपौरुषेय कहा गया है। गुरु द्वारा शिष्यों को मौखिक रूप से कंठस्त कराने के कारण वेदों को "श्रुति" की संज्ञा दी गई है।
आर्यों का भारत आगमन आर्य भारत कब आए इस पर कोई भी एक मत नहीं है पर कुछ इतिहासकारों का मानना है की आर्य भारत मे 2000 ई० पू० उत्तर पश्चिम की ओर से आए और उन्होने सिंधु सभ्यता को ध्वस्त कर एक नये सिंधु प्रदेश का निर्माण किया जो आर्य सभ्यता के नाम से जाना जाने लगा.चूंकि इसको जानने का एक मात्र साधन वेद है इसलिए इसे वैदिक सभ्यता भी कहा जाता है विश्व की संस्कृतियों मे वैदिक संस्कृति का अपना अलग ही स्थान है । वैदिक काल प्राचीन भारतीय संस्कृति का एक काल खंड है. उस दौरान वेदों की रचना हुई थी हड़प्पा सभ्यता के पतन के बाद भारत मे एक नयी सभ्यता का जन्म हुआ इस सभ्यता की जानकारी वेदो के माध्यम से हुई इसलिए इस वैदिक काल कहा गया । आर्यों ने देवताओं को तीन रूपों की चर्चा की है अथवा देवताओं को तीन बरगोन मे विभक्त किया है। आकाशीय देवता, अंतरिक्षवासी देवता, व पृथ्वीवासी देवता ।
आकाशीय देवताओं में सूर्य, विष्णु, वरुण, सविता, मित्र, आश्विन और उषा प्रमुख हैं
अंतरिक्षवासी देवताओं मे इन्द्र, आपात-नपाम, पर्जन्य, और रुद्र, प्रमुख हैं.
पृथ्वीवासी देवताओं मे अग्नि, और सोम प्रमुख देवता हैं. 

आर्यों का जीवन बहुत ही सादा था वे सूर्य, वायु, अग्नि, आकाश आदि की देवता समझकर उनकी उपासना करते थे आर्य देवताओं मे विश्वास रखते थे तथा उन्हे प्रसन्न करने के लिए मंत्रौचारण करते थे तथा यज्ञ करते थे। उनका यह मानना था की ईश्वर सर्वव्यापी है आर्यों का प्रिय पशु घोड़ा और प्रिय देवता इंद्र थे आर्यों द्वारा खोजी गई धातु लोहा थी व्यापार  के दूर-दूर जाने वाले व्यक्ति को पणि कहा जाता था. लेन-देन में वस्तु-विनिमय प्रणाली मौजूद थी.ऋण देकर ब्याज देने वाले को सूदखोर कहा जाता था. आर्य तीन तरह के कपड़ों का इस्तेमाल करते थे.
1.    वास

2.    अधिवास

3.    उष्षणीय  

अंदर पहनने वाले कपड़ों को निवि कहा जाता था. संगीत, रथदौड़, घुड़दौड़ आर्यों के मनोरंजन के साधन थे.   
वरुण – बरुन आर्यों का प्रमुख देवता था उनका मानना था की कोई भी पापी उनकी नजर से बच नहीं सकता अत: पापी लोग उनकी पुजा आराधना करते थे
इन्द्र –आर्य लोग इन्द्र को वर्षा व युद्ध का देवता मानते थे। जब वर्षा नहीं होती थी तो आर्य लोग इन्द्र को
प्रसन्न करने के लिए यज्ञ किया करते थे। युद्ध मे भी  विजय पाने के लिए आर्य लोग इन्द्र देवता की पूजा व यज्ञ किया करते थे ।
अग्नि –आर्यों का मानना था की भक्तों की दी हुई आहुती को यही भगवान तक पाहुचाती है इसलिए अग्नि देव की पुजा किया करते थे।
सूर्य - सूर्य संसार के अंधकार को दूर करता है इसलिए आर्य लोग सूर्य देव की पुजा किया करते थे ।
वैदिक संस्कृति मे विश्व बंधुत्व की भावना का अपना महत्वपूर्ण स्थान है इसी आधार पर “वसुधैव कुटुम्बकम” तथा आत्मवत्ससर्वभूतेसु की भावना परवर्ती कल मे पल्लवित हुई जिसका परिणाम तो राजा एवं रंक में स्नेह की भावना का संचार करता है जैसे

श्री कृष्ण- सुदामा की मैत्री को हम ले सकते हैं जो की भारतीय इतिहास में अमर है विश्वशान्ति व विश्वबंधुत्व की उदात्त कमनीय भावना का निदर्शन इस में मिलता है यही नहीं विश्व की कल्याण कामना ही इस संस्कृति का मूल मंत्र है।
           
  सर्वे भवन्तु सुखिन सर्वे संतु निरमाया:।                                                                                      सर्वे भद्राणी पश्यन्तु मा कश्चिद दु:खभागभवेत ।।    
        


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