सनातन धर्म पृथ्वी के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है; कुछ लोगों का मानना है की ब्रह्मा, विष्णु, महेश सहित अग्नि, आदित्य, वायु और अंगिरा ने इस धर्म की स्थापना की कहे तो विष्णु से ब्रह्मा, ब्रह्मा से 11 रुद्र, 11 प्रजापतियों और स्वायंभुव मनु के माध्यम से इस धर्म की स्थापना हुई। इस धर्म के लोगों के उपासना स्थल को मन्दिर कहते हैं। यह अराधना और पूजा-अर्चना के लिए निश्चित की हुई जगह है। यानी जिस जगह किसी आराध्य देव के प्रति ध्यान या चिंतन किया जाए या वहां मूर्ति इत्यादि रखकर पूजा-अर्चना की जाए उसे मंदिर कहते हैं। इस धर्म की धार्मिक ग्रंथ श्रीमद भगवत गीता है । हालाँकि इसके इतिहास के बारे में अनेक विद्वानों के अनेक मत हैं। आधुनिक इतिहासकार हड़प्पा, मेहरगढ़ आदि पुरातात्विक अन्वेषणों के आधार पर इस धर्म का इतिहास कुछ हज़ार वर्ष पुराना मानते हैं। जहाँ भारत की सिधु घाटी सभ्यता में हिन्दू धर्म के कई चिह्न मिलते हैं। इनमें एक अज्ञात मातृदेवी की मूर्तियाँ, भगवान शिव पशुपति जैसे देवता की मुद्राएँ,
शिवलिंग, पीपल की पूजा, इत्यादि प्रमुख हैं। इतिहासकारों के एक दृष्टिकोण के अनुसार इस सभ्यता के अन्त के दौरान मध्य एशिया से एक अन्य जाति का आगमन हुआ, जो स्वयं को आर्य कहते थे और संस्कृत नाम की एक हिन्दू यूरोपीय भाषा बोलते थे। एक अन्य दृष्टिकोण के अनुसार सिधु घाटी सभ्यता के लोग स्वयं ही आर्य थे और उनका मूलस्थान भारत ही था। आर्यों की सभ्यता को वैदिक सभ्यता कहते हैं। पहले दृष्टिकोण के अनुसार लगभग 1700 ईसा पूर्व में आर्य अफ़्ग़ानिस्तान, कश्मीर, पंजाब और हरियाणा में बस गए। तभी से वो लोग अपने देवताओं को प्रसन्न करने के लिए वैदिक संस्कृत में मन्त्र रचने लगे। पहले चार वेद रचे गए, जिनमें ऋग्वेद प्रथम था। उसके बाद उपनिषद जैसे ग्रन्थ आए। हिन्दू मान्यता के अनुसार वेद, उपनिषद आदि ग्रन्थ अनादि, नित्य हैं, ईश्वर की कृपा से अलग-अलग मन्त्रद्रष्टा ऋषियों को अलग-अलग ग्रन्थों का ज्ञान प्राप्त हुआ जिन्होंने फिर उन्हें लिपिबद्ध किया। नये देवता और नये दर्शन उभरे। इस तरह आधुनिक हिन्दू धर्म का जन्म हुआ। दूसरे दृष्टिकोण के अनुसार हिन्दू धर्म का मूल कदाचित सिंधु सरस्वती परम्परा ( जिसका स्रोत मेहरगढ़ की 6400 ई.पू. संस्कृति में मिलता है ) से भी पहले की भारतीय परम्परा में है।
सिन्धु नदी के पार के वासियो को ईरानवासी हिन्दू कहते थे, जो 'स' का उच्चारण 'ह' करते थे। उनकी देखा-देखी अरब
हमलावर भी भारतवासियों को हिन्दू और उनके धर्म को हिन्दू धर्म कहने लगे। वैदिक काल में भारतीय धर्म के
लिये 'सनातन
धर्म' का
नाम मिलता है। 'सनातन' का अर्थ है 'हमेशा बना रहने वाला', अर्थात् जिसका न आदि है न अन्त।
धर्म मूलत: भारतीय धर्म है, जो किसी ज़माने में पूरे भारत तक
व्याप्त रहा है। प्राचीन
काल में भारतीय सनातन धर्म में पाँच सम्प्रदाय होते थे। गणेश की, विष्णु की, शिव की, शक्ति की और सूर्य की पूजा
आराधना किया करते थे। पर यह मान्यता थी कि सब एक ही सत्य की व्याख्या हैं। यह न
केवल ऋग्वेद परन्तु रामायण और महाभारत जैसे लोकप्रिय ग्रन्थों में भी स्पष्ट रूप
से कहा गया है। प्रत्येक सम्प्रदाय के समर्थक अपने देवता को दूसरे सम्प्रदायों के देवता
से बड़ा समझते थे और इस कारण से उनमें वैमनस्य बना रहता था। एकता बनाए रखने के
उद्देश्य से धर्मगुरुओं ने लोगों को यह शिक्षा देना आरम्भ किया कि सभी देवता समान
हैं, विष्णु, शिव और शक्ति आदि देवी-देवता
परस्पर एक दूसरे के भी भक्त हैं। उनकी इन शिक्षाओं से तीनों सम्प्रदायों में मेल
हुआ और सनातन धर्म की उत्पत्ति हुई। सनातन धर्म में विष्णु, शिव और शक्ति को समान माना गया
और तीनों ही सम्प्रदाय के समर्थक इस धर्म को मानने लगे।
सनातन धर्म का सारा
साहित्य वेद, पुराण, श्रुति, स्मृतियाँ, उपनिषद्, रामायण, महाभारत, गीता आदि संस्कृत भाषा में रचा
गया है। कालान्तर में भारतवर्ष में मुसलमान शासन हो जाने के कारण
देवभाषा संस्कृत का ह्रास हो गया तथा सनातन धर्म की अवनति होने लगी। इस स्थिति को
सुधारने के लिये विद्वान संत तुलसीदास ने प्रचलित भाषा में धार्मिक साहित्य की
रचना करके सनातन धर्म की रक्षा की ।
महर्षि मनु ने कहा है
श्रूयतां धर्म सर्वस्वं श्रुत्वा चैव अनुवर्त्यताम्।
आत्मनः प्रतिकूलानि, परेषां न
समाचरेत् ॥
धर्म का सर्वस्व क्या है, सुनो और सुनकर उस पर चलो !अपने को जो अच्छा
न लगे, वैसा आचरण दूसरे के
साथ नही करना चाहिये।
आकाश, वायु, जल, अग्नि, और पृथ्वी यह सभी
सत्य की श्रेणी मे आते हैं ये अपना रूप बदलते हैं पर कभी समाप्त नहीं होते। धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन सभी मे
मोक्ष अंतिम है सत कर्म, सच्चाई के मार्ग पर चलने ही मोक्ष की
प्राप्ति होती है। जन्म और मृत्यु सिर्फ मिथ्या है मोक्ष ही सत्य है। अन्य सभी तो
तब तक रहते हैं जब तक मोक्ष न प्राप्त न हो। यही सनातन धर्म का सत्य है.
No comments:
Post a Comment