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सिख धर्म


सिख शब्द को संस्कृत भाषा के शिष्य शब्द से लिया गया है सिख धर्म की स्थापना सिखों के प्रथम गुरु श्री गुरु नानक देव जी ने की थी। इसमें सनातन धर्म का व्यापक प्रभाव मिलता है। इस पन्थ के अनुयायीयों को सिख कहा जाता है।  गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल 1469 ई। मे वर्तमान ननकाना साहिब ( पंजाब पाकिस्तान ) मे हुआ था। गुरु नानक देव जी का नाम ऐसा है जिसे बहुत श्रद्धा ओर स्नेह के साथ लिया जाता है भारत में सिख पंथ का अपना एक पवित्र एवं अनुपम स्थान है गुरुनानक देव जी ने अपने समय के भारतीय समाज में व्याप्त कुप्रथाओं, अंधविश्वासों, जर्जर रूढ़ियों और पाखण्डों को दूर करते हुए। उन्होंने प्रेम, सेवा, परिश्रम, परोपकार और भाई-चारे की नीव पर सिख धर्म की स्थापना की। एक उदारवादी दृष्टिकोण से गुरुनानक देव ने सभी धर्मों की अच्छाइयों को समाहित किया। उनका मुख्य उपदेश था कि ईश्वर एक है, उसी ने सबको बनाया है। हिन्दू मुसलमान सभी एक ही ईश्वर की संतान हैं और ईश्वर के लिए सभी समान हैं। उन्होंने यह भी बताया है कि ईश्वर सत्य है और मनुष्य को अच्छे कार्य करने चाहिए  सिख धर्म का धार्मिक ग्रंथ श्री गुरु ग्रंथ साहिब है” ( इसमे 974 शब्द 19 रागों मे) गुरबाणी मे शामिल हैं  और सिख धर्म के धार्मिक स्थल को “गुरुद्वारा” कहा जाता है।

श्री गुरु नानक देव जी के बाद नौ गुरु हुए दसवें व आखिरी गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी हुए व इनके बाद गुरु की परंपरा समाप्त हो गयी श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने मुगलों के खिलाफ “ लड़ाका” फौज तैयार की जिसे “खालसा” के नाम से जाना जाता है । खालसा की स्थापना गुरु गोविंद सिंह जी ने 1699 को बैसाखी  वाले दिन आनंदपुर साहिब में की। इस दिन उन्होंने सर्वप्रथम पाँच प्यारों को अमृतपान करवा कर खालसा बनाया तथा तत्पश्चात् उन पाँच प्यारों के हाथों से स्वयं भी अमृतपान किया। सतगुरु गोबिंद सिंह ने खालसा महिमा में खालसा को "काल पुरख की फ़ौज" पद से निवाजा है। पाहुल संस्कार के बाद कोई भी व्यक्ति इसमे शामिल हो सकता था इसमे शामिल होने वाले पुरुष अपने नाम के साथ “सिंह” व महिलाएं कौर” लगाती थी। खालसा फौज मे जो भी शामिल होता था उसे पाँच “क” धारण करने अति आवश्यक थे जिनमे 1. केश, 2. कंघा, 3. कच्छा, 4. कड़ा, और 5. कृपाण.

सिखों के दस गुरु

श्री गुरु नानक देव जी- सिख धर्म के प्रवर्तक गुरुनानक देव का जन्म 15 अप्रैल, 1469 में हुआ था। यही वो स्थान है जहां सन् 1539 को गुरु नानक जी का देहांत हुआ था।

श्री गुरु अंगद देव जी- गुरु अंगद देव सिखों के दूसरे गुरु थे। गुरु नानक देव ने अपने खुद के दोनों पुत्रों को छोड़कर अंगद देव जी को अपना उत्तराधिकारी बनाने के लिए चुना था। इनका जन्म फिरोजपुर, पंजाब में 31 मार्च, 1504 को हुआ था।
श्री गुरु अमर दास जी- गुरु अंगद देव के बाद गुरु अमर दास सिखों के तीसरे गुरु बने। इन्होंने जाति प्रथा, ऊंच -नीच ,सती प्रथा जैसी समाज की कई कुरीतियों को खत्म करने में अपना अहम योगदान दिया था।

श्री गुरु रामदास जी- गुरु अमरदास के बाद गुरु रामदास सिखों के चौथे गुरु बने। उन्होंने 1577 ई . में अमृत सरोवर नाम के एक नगर की स्थापना की थी, जो आगे चलकर अमृतसर के नाम से प्रसिद्ध हुआ।     
      
श्री गुरु अर्जुन देव जी- गुरु अर्जुन देव सिखों के 5 वें गुरु हुए। उनका जन्म 15 अप्रैल, 1563 में हुआ था। सिखों के 5वें गुरु अर्जुन देव का बलिदान सबसे महान माना जाता है। उन्होंने अमृत सरोवर बनवाकर उसमें हरमंदिर साहब (स्वर्ण मंदिर ) का निर्माण करवाया। 

श्री गुरु हरगोबिन्द सिंह जी- गुरु हरगोबिन्द सिंह सिखों के छठे गुरु थे। यह सिखों के पांचवें गुरु अर्जुन देव के पुत्र थे। गुरु हरगोबिन्द सिंह ने ही सिखों को अस्त्र -शस्त्र का प्रशिक्षण लेने के लिए प्रेरित किया।

श्री गुरु हर राय जी- गुरु हर राय सिखों के 7वें गुरु थे। उनका जन्म 16 जनवरी, 1630 ई . में पंजाब में हुआ था।

श्री गुरु हरकिशन साहिब जी- गुरु हरकिशन साहिब सिखों के आठवें गुरु थे। इनका जन्म 7 जुलाई, 1656 को किरतपुर साहेब में हुआ था। इन्हें बहुत छोटी उम्र में ही गद्दी प्राप्त हो गई थी।        

श्री गुरु तेग बहादुर सिंह जी- गुरु तेग बहादुर सिंह का जन्म 18 अप्रैल, 1621 को पंजाब के अमृतसर नगर में हुआ था। वह सिखों के नौवें गुरु थे। गुरु तेग बहादर सिंह ने धर्म की रक्षा और धार्मिक स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व त्याग दिया था। जिसकी वजह से वो हिन्द की चादर भी कहलाए। 24 नवंबर 1675 को धर्म की रक्षा करते हुए गुरु तेग बहादुर सिंह जी का देहांत हो गया । औरंगजेब ने उनका शीश काटकर चाँदनी चौक पट लटका दिया था ।   

श्री गोविंद सिंह जी- गुरु गोबिन्द सिंह का जन्म पटना मे हुआ था उनको 9 वर्ष की उम्र में गुरु गद्दी मिली थी। उस समय देश पर मुगलों का शासन था। उन्होंने अपने पिता का बदला लेने के लिए तलवार हाथ में उठाई थी। बाद में गुरु गोबिन्द सिंह ने गुरु प्रथा समाप्त कर गुरु ग्रंथ साहिब को ही एकमात्र गुरु मान लिया।

चार साहिबजादे
शिखों के दशम गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी के चार सुपुत्रों को चार साहिबजादे कहा जाता है
साहिबजादा अजीत सिंह-  चमकौर के युद्ध मैं यह महान वीर अतुलनीय वीरता का प्रदर्शन करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। मात्र 17 वर्ष की उम्र में शहीद हो गए। इनके नाम पर पंजाब के मोहाली शहर का नाम साहिबजादा अजित सिंह नगर किया गया।
जुझार सिंह - जुझार सिंह श्री गुरु गोविंद सिंह जी के दूसरे थे जो की अपने बड़े भाई अजित सिंह की मृत्यु के बाद उन्होने मोर्चा संभाला व वह भी अपनी अतुलनीय वीरता का प्रदर्शन करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।

जोरावर सिंह- ये श्री गुरु गोविंद सिंह जी के तीसरे पुत्र थे जो की उनके ही एक सेवक के विश्वासघात के कारण सरहिंद के नवाब वजीर खान ने उन्हें बंदी बना लिया गय़ा तथा बाद में जीवित ही दीवार में चिनवा दिया।

फतेह सिंह- फतेहसिंह श्री गुरु गोविंद सिंह जी के चतुर्थ पुत्र थे इन्हें भी इनके बड़े भाई ज़ोरावर सिंह सहित सरहिंद के नवाब वजीर खान द्वारा बंदी बना लिया गय़ा तथा बाद में जीवित ही दीवार में चिनवा दिया गया।
                                                              
"एक ओंकार सतनाम" ओंकार शब्द में ही ईश्वर है सिख धर्म का मानना है कि ईश्वर एक ही और सभी धर्म उसी ईश्वर की विभिन्न रूपों में आराधना करते हैं। सिख धर्म के लोग सेवा करने को ईश्वर की पूजा समान मानते हैं जहां पर सभी भेदभाव मिटाकर सभी लोगों के लिए चाहे वो किसी भी धर्म-जाति, अमीर-गरीब सबके लिए गुरुद्वारे मे “लंगर” (भंडारा) लगाया जाता है
लोहड़ी सिखों का प्रमुख त्यौहार है जो मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाता है। सिख धर्म का मूल मंत्र “इक्क ओन्कार सत नाम करता पुरख निरभऊ निरवैर अकाल मूरत अजूनी सैभं गुर प्रसाद” है जिसका अर्थ है की ईश्वर एक है जिसका नाम सत्य है, कीर्तिमान पुरुष जो दोष रहित है, स्वछ छवि वाला,जो स्वयं से उत्पन्न हुआ है ( जिसका जन्म नही हुआ हो ) जो गुरु की कृपा से प्राप्त हुआ हो.

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