ऋग्वेद
ऋग्वेद संसार का सबसे प्राचीन ग्रंथ माना जाता है
इसकी रचना सप्त-सैन्धव प्रदेश मे हुई थी। इसकी भाषा साहित्यिक है पूरा ग्रंथ कविता
के रूप मे संस्कृत में लिखा गया था तथा संस्कृत को ही
विश्व की प्राचीनतम भाषाशैली का दर्जा प्राप्त है. इसमे
देवताओं का यज्ञ आह्वान करने के लिए मंत्र हैं यही सर्वप्रथम वेद है इस वेद मे
वरुण, अग्नि, इन्द्र, वायु, जल, सोम आदि देवताओं की स्तुतियाँ हैं यह सनातन
धर्म का आरंभिक स्रोत है सम्पूर्ण ऋग्वेद को 10 मंडलों विभक्त किया गया है पहले 10
मंडलों मे छोटे वंशो की रचनाएँ हैं इनमे आठवाँ, नवां,और दशवा,मण्डल स्तुतिपरक काव्य की नवीनतम सामाग्री
का वर्णन करते हैं दूसरे मण्डल से सातवें मण्डल तक को आरंभिक मण्डल माना जाता है
इनकी रचनाएँ विश्वामित्र, अत्री,
भारद्वाज, गृतसमद, और वशिष्ठ गोत्र के
सदस्यों ने की थी इसके अलावा ऋग्वेद मे 1028 सूक्त और 10,627 मंत्र हैं यह एक प्रमुख हिन्दू ग्रंथ है इसमे एकदैवत्व तथा एकार्थ का ही
प्रतिपादन रहता है
ऋग्वेद की प्रमुख विशेषताएँ
ऋग्वेद मे ही महामृत्युंजय मंत्र ( ॐ त्र्यंबकम यजामहे
सुगंधि पुष्टिवर्धनम उर्वारुकमिव मृत्योमुक्षीय मामृतात ) वर्णित है
महामृत्युंजय मंत्र मे 33 अक्सर हैं महर्षि वशिष्ठ के अनुसार ये 33 अक्सर 33
देवताओं के धौतक हैं
ऋग्वेद
के अनुसार इस मंत्र ( महामृत्युंजय मंत्र ) के जप से विधिवत व्रत तथा हवन
से दीर्घायु प्राप्त होती है तथा मृत्यु दूर होकर सुख प्राप्त होता है
विश्व विख्यात गायत्री मंत्र ( ॐ भूर्भुव:
स्व: तत्सवितुर्वरेण्यम भर्गों देवस्य: धीमहि धियों यो न: प्रचोदया ) भी इसी मे
वर्णित है
ऋग्वेद लगभग 25 नदियों का वर्णन मिलता है जिसमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण नदी
सिंधु को माना गया है तथा सर्वाधिक उल्लेख सिंधु नदी का ही मिलता है.
ऋग्वेद में सबसे प्राचीनतम नदी सरस्वती को
माना गया है
ऋगवेद के नदी सुक्त में उल्लिखित अंतिम नदी
गौमल है.
इसमें गंगा एवं सरयू का एक बार तथा यमुना
का दो बार उल्लेख हुआ है ।
ऋग्वेद में गौ शब्द का प्रयोग 176 बार किया गया है.
ऋग्वेद में औषधि संबंधी ज्ञान भी मिलता है ऋग्वेद के 9वें मण्डल मे सोम रस की प्रशंसा की गई
है।
ऋग्वेद मे गाय के
लिए “अहन्या शब्द का प्रयोग किया गया
है
ऋग्वेद में कपड़े के लिए वस्त्र, वास तथा वसन शब्दों
का उल्लेख किया गया है। इस वेद में 'भिषक्' को देवताओं का चिकित्सक कहा गया है।
ऋग्वेद मे कृषि का
उल्लेख 24 बार किया गया है।
आर्यों के पाँच कबीले होने के कारण उन्हें
ऋग्वेद में 'पञ्चजन्य' कहा गया – ये थे- पुरु, यदु, अनु, तुर्वशु तथा द्रहयु।
इस वेद में आर्यों
के निवास स्थल के लिए सर्वत्र 'सप्त सिन्धवः' शब्द का प्रयोग हुआ है
इसमें इन्द्र को सर्वमान्य तथा सबसे अधिक शक्तिशाली
देवता माना गया है। इसमें सबसे अधिक सूक्त 250 सर्वाधिक प्रतापी देवता इंद्र के लिए रचे गए हैं
ऋग्वेद मे 200 श्लोक अग्नि देवता को समर्पित है
ऋग्वेद के एक मण्डल
में केवल एक ही देवता की स्तुति में श्लोक हैं, वह सोम देवता है।
इस वेद मे बहुदेववाद, एकेश्वरवाद, एकात्मवाद, का उल्लेख है।
ऋग्वेद में राजा का पद वंशानुगत होता था। ऋग्वेद में सूत, रथकार तथा कर्मार
नामों का उल्लेख हुआ है, जो राज्याभिषेक के समय पर
उपस्थित रहते थे। इन सभी की संख्या राजा को मिलाकर 12 थी।
ऋग्वेद की जिन 21 शाखाओं का वर्णन मिलता है, उनमें से चरणव्युह
ग्रंथ के अनुसार पाँच ही प्रमुख हैं-
शाकल, 2. वाष्कल, 3. आश्वलायन, 4.शांखायान 5. मांडूकायन ।
ऋग्वेद का उपवेद आयुर्वेद है आयुर्वेद के कर्ता
ध्वनतरी हैं।
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