सामवेद
साम का अर्थ है छंद जिसके माध्यम से मंत्रों को
देवताओं की स्तुति के समय गाया जाता था । सामवेद गीत-संगीत प्रधान है आर्यों द्वारा
साम गान किया जाता था. जिन ऋचाओं के ऊपर ये साम गाये जाते हैं उनको वैदिक लोग‘साम-योनि’ नाम
से पुकराते है। आकार की दृष्टि से सामवेद सभी वेदों मे सबसे छोटा है सामवेद मे
1875 रचनाओं मे से 69 को छोडकर सभी ऋग्वेद से लिए गए हैं जिन्हे सोमयज्ञ के समय पंडित
गाते थे केवल 17 मंत्र अथर्ववेद और यजुर्वेद के पाये जाते हैं पुराणों
के अनुसार सामवेद की 1000 सहिताएं हैं वर्तमान में प्रपंच हृदय, दिव्यवदान, चरणव्यूह तथा जैमिनी हैं। गृहसूत्र को देखने पर 13 शाखाओं का पता चलता है लेकिन
इनमे से केवल तीन ही उपलब्ध हैं – कौथुम,
राणायनीय, और जैमनीय. इसका अध्ययन करने
वाले पंडित "उंदाता" कहलाते थे । श्रीमद भगवत गीता मे भी भगवान श्री कृष्ण द्वारा “वेदानां
सामवेदोंस्मि” का उच्चारण भी इस वेद के महत्व को दर्शाता है इसके अलावा अनुशासन
पर्व मे भी सामवेद की महत्ता को दर्शाया गया है “सामवेद्श्च वेदानां यजुषा
शतरुद्रीयम”.
सामवेद की विशेषताएँ
· अग्नि पुराण के अनुसार सामवेद के बिभिन्न मंत्रों
के निरंतर जप से अनेकों रोगों से मुक्त हुआ जा सकता है और अनेकों कामनाओं की
सिद्धि हो सकती है।
सामवेद ज्ञानयोग, भक्तियोग,
व कर्मयोग की त्रिवेणी है
सामवेद को भारतीय संगीत का जनक कहा जाता है
समस्त स्वर, ताल, लय, छंद, गति, मंत्र, स्वर-चिकित्सा, राग, नृत्य, मुद्रा, भाव सभी सामवेद से निकले हैं
सभी वेदों के चुने हुए अंश इसमें शामिल किये गये
है
इस वेद को सभी वेदों का सार माना जाता है
भागवत, विष्णुपुराण तथा वायुपुराण के
अनुसार वेदव्यास जी ने अपने शिष्य जैमिनि को
साम की शिक्षा दी।
जैमिनि ही साम के आद्य आचार्य के रूप में सर्वत्र
प्रतिष्ठित है।
सामवेद को पूर्वार्चिक और उत्तरार्चिक में बांटा गया
है। पूर्वार्चिक में चार काण्ड हैं - आग्नेय काण्ड, ऐन्द्र काण्ड, पवमान काण्ड और आरण्य काण्ड।
चारों काण्डों में कुल 640 मंत्र हैं।
सामवेद का उपवेद “गन्धर्ववेद” है ।
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