यजुर्वेद
यजुर्वेद हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण व चार
वेदों मे से एक धर्मग्रंथ है । माना जाता है की ऋग्वेद के काफी समय बाद आर्यों ने
यजुर्वेद की रचना की इसका कुछ भाग गध्य तथा कुछ भाग पध्य मे रचित है माना जाता है
की इसकी रचना कुरुक्षेत्र मे हुई थी इससे पता चलता है की आर्य सप्त सैन्धव से आगे
बढ़ गए थे और वे प्रकृति के प्रति उदासीन होने लगे थे इसका पुरोहित अध्वुर्य है
यजुर्वेद का अंतिम अध्याय इशावास्य उपनिषद है जो आदिम माना जाता है क्योंकि इसे
छोड़कर कोई भी उपनिषद संहिता का भाग नहीं है इस वेद को मुख्यत: दो भागों मे बांटा
गया है शुक्ल यजुर्वेद और कृष्ण यजुर्वेद. इसमें ऋग्वेद के 663 मंत्र पाए जाते
हैं। फिर भी इसे ऋग्वेद से अलग माना जाता है क्योंकि यजुर्वेद मुख्य रूप से एक
गद्यात्मक ग्रन्थ है
शुक्ल यजुर्वेद दर्श और पूर्णमास के लिए आवश्यक मंत्रों का संकलन है इसकी
मुख्य शाखाएँ हैं – मध्यन्दिन और काण्व इसकी संहिता को वाजसने भी कहा गया है,
कृष्ण यजुर्वेद मे मंत्रों के साथ-साथ तांत्रियोजक
ब्राहम्णो का भी मिश्रण है
इसकी मुख्य शाखाएँ हैं- तैत्रीय, मैत्रायनी, कठ,
और कपिष्ठल हैं ।
यजुर्वेद में चालीस अध्याय हैं यह मूलत: यज्ञों का वेद है इसमे यज्ञों तथा हवनों के लिए नियम तथा विधान हैं इसमे हमे आर्यों के जीवन के बारे मे पता चलता है
यजुर्वेद में चालीस अध्याय हैं यह मूलत: यज्ञों का वेद है इसमे यज्ञों तथा हवनों के लिए नियम तथा विधान हैं इसमे हमे आर्यों के जीवन के बारे मे पता चलता है
यजुर्वेद की अन्य विशेषताएँ
यज्ञ में कहे जाने वाले गद्यात्मक मन्त्रों को ‘यजुस’ कहा जाता है। यह ग्रन्थ कर्मकाण्ड प्रधान है। यजुर्वेद से उत्तरवैदिक युग की राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक जीवन की
जानकारी मिलती हैं। यजुर्वेद में वैदिक अनुष्ठान की प्रकृति पर विस्तृत चिंतन है
और इसमें यज्ञ संपन्न कराने वाले प्राथमिक ब्राह्मण व आहुति देने के दौरान प्रयुक्त
मंत्रों पर गीति पुस्तिका भी शामिल है। इस प्रकार यजुर्वेद यज्ञों के आधारभूत
तत्त्वों से सर्वाधिक निकटता रखने वाला वेद
है
यजुर्वेद से सम्बंधित उपनिषद - श्वेताश्वतर, बृहदारण्यक, ईश,
प्रश्न, मुंडक.
यजुर्वेद का
उपवेद “धनुर्वेद”है
अति सुंदर
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