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ईसाई धर्म


ईसाई धर्म के प्रवर्तक ईसा मसीह थे इनका जन्म बेथलहम मे हुआ था इनके अन्य नाम जैसे जीजस क्राइस्ट, यीशु मसीह थे. इनकी माता का नाम मरियम ( मैरी) व पिता का नाम युसुफ (जोसेफ) था. यीशु के जन्म से संबन्धित जानकारी हमे बाइबल से मिलती है. बाइबल ईसाई धर्म का धार्मिक ग्रंथ है इसाइयों का “नया नियम” व यहूदियों के पुराना नियम” उनके धर्म ग्रंथ “तनख” को एक साथ मिलाया गया व उसी ने बाइबल का रूप लिया। बाइबल के अनुसार यीशु की माता मरियम इज़राइल के गलिलिया क्षेत्र के नाजरेथ नामक गाँव मे रहती थी. माना जाता है कि ईश्वरीय प्रभाव से विवाह पृर्व ही मरियम  ( जब कुँवारी थी ) गर्भवती हो गयी थी। उसके बाद उनका विवाह युसुफ से हुआ व मरियम और युसुफ विवाह पश्चात गलिलिया छोडकर बेथलहम नामक नगर मे जाकर रहने लगे जहां यीशु का जन्म हुआ इसके पश्चात युसुफ इज़राइल के राजा के अत्याचार से मिश्र मे जाकर रहने लगे व कुछ समय पश्चात वापस नाजरेथ गाँव चले गए। ईसाई धर्म को मानने वाले यीशु को परमेश्वर का पुत्र मानते हैं जो सभी मनुष्यों को पाप और मृत्यु से बचाने के लिए मनुष्य का रूप धारण कर इस पृथ्वी पर आए हैं। यीशु के जन्म से 29 वर्ष तक कोई जानकारी नहीं मिलती पर माना जाता है कि 30 वर्ष की उम्र मे उन्होने योहान्ना से शिक्षा ग्रहण की.

व तत्पश्चात वह भी अपने पिता के साथ बढ़ई का काम करने लगे। उस समय समस्त यहूदी जाति रोमन सम्राट के अधीन थी व यहूदी इस गुलामी से आजादी के लिए अपने प्रभु की राह देख रहे थे उस समय यीशु ने बढ़ई का काम छोड़ दिया व लोगों मे ज्ञान बांटने लगे। यीशु को लोगों ने बढ़ई का काम करते हुए देखा था लोगों को आश्चर्य हुआ और लोग अनुभव करने लगे की यीशु सरल भाषा मे दैनिक जीवन के मौलिक आधारों की शिक्षा दे रहे थे।


ईसाई धर्म की शिक्षाएं


ईश्वर एक है, ईसाई धर्म के अनुसार जीव हत्या, अनावश्यक हरे पेड़ों की कटाई ,किसी को व्यर्थ आघात पहुँचाना, व्यर्थ जल बहाना, आदि पाप है। उसमें विश्वास रखना चाहिए। ईश्वर के प्रति समर्पण कर चारित्रिक गुणों का विकास करना चाहिए। जन सेवा व जनकल्याण के लिए मनुष्य को अपना जीवन लगा देना चाहिए। सेवा, प्रेम व परोपकार अमूल्य धरोहर है, यह धरोहर जिसके पास है उसके लिए प्रभु के राज्य में जगह है। दुखियों की सेवा सच्ची ईश्वर सेवा है। क्रोध व ईर्ष्या जैसे दुर्गुणों को छोड़ देना चाहिए। यह भावना सच्चे मानव के निर्माण में सहायक होती है। मनुष्य प्रेम ही ईश्वर प्रेम है और मनुष्य की सेवा ही ईश्वर की सेवा है। शुद्ध हृदय से प्रायश्चित करने पर ईश्वर पापी को भी क्षमा कर देता है



यीशु के शिष्य
  • पीटर
  • एंड्रयू
  • जेम्स (जबेदी का बेटा)
  • जॉन
  • फिलिप
  • बर्थोलोमियू
  • मैथ्यू
  • सेंट थॉमस
  • जेम्स (अल्फाइयूज का बेटा)
  • संत जुदास
  • साइमन द जिलोट
  • मत्तिय्याह                                                                                                                              
ईसाई धर्म के प्रवर्तक ईसा मसीह को इसलिए प्राणदंड दिया कि वह मसीह तथा ईश्वर का पुत्र होने का दावा करते हैं। रोमन गवर्नर ने उन्हे सूली पर लटकाने का आदेश दिया था। व तत्पश्चात उन्हे दफनाया गया था। कहा जाता है कि 3 दिन बाद उनकी कब्र खाली मिली थी व यीशु पुनर्जीवित होकर अपने शिष्यो को दिखाई देने लगे। उस समय यीशु ने अपने शिष्यों को समस्त संसार मे जाकर धर्म का प्रचार करने का आदेश दिया। ये माना जाता है उसके बाद  यीशु के 12 शिष्यों मे से एक सेंट थॉमस भारत आए व केरल मे बस गए। साथ ही कुछ दूसरे धर्म के लोगों को भी ईसाई धर्म स्वीकार करने के लिए राजी किया भारत आने के बाद सेंट थॉमस ने कई चर्च बनावाए. व तत्पश्चात वह धर्म प्रचार के लिए चेन्नई चले गए कहा जाता है चेन्नई के लोगों ने धर्म स्वीकार नहीं किया व उनका विरोध किया व कुछ समय पश्चात चेन्नई मे ही उनकी मृत्यु हो गयी। कई वर्षो के बाद जब पुर्तगाली भारत आए उन्होने इसी जगह पर गिरिजाघर की स्थापना की जो आज सेंट थॉमस माउंट” के नाम से प्रसिद्ध है.
                                                                              

ईसाई धर्म के कुछ मुख्य तथ्य


ईसा मसीह जा जन्मदिवस 25 दिसंबर यानि क्रिसमस के दिन मनाया जाता है                                      
ईसा मसीह को सूली पर रोमन गवर्नर पोंटियस ने चढ़ाया था.                                           
ईसाई धर्म का सबसे पवित्र चिह्न क्रॉस है.                                                   
ईसा मसीह के पहले दो शिष्य थे पीटर और एंड्रयू.                                                 
वे ईश्वर को त्रीएक के रूप में समझते हैं- परमपिता परमेश्वर, उनके पुत्र ईसा मसीह (यीशु मसीह) और पवित्र आत्मा.                                                                               
कैथोलिक, प्रोटैस्टैंट, आर्थोडॉक्स, मॉरोनी, एवनजीलक. नामक इसाइयों के समुदाय हैं              
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सिख धर्म


सिख शब्द को संस्कृत भाषा के शिष्य शब्द से लिया गया है सिख धर्म की स्थापना सिखों के प्रथम गुरु श्री गुरु नानक देव जी ने की थी। इसमें सनातन धर्म का व्यापक प्रभाव मिलता है। इस पन्थ के अनुयायीयों को सिख कहा जाता है।  गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल 1469 ई। मे वर्तमान ननकाना साहिब ( पंजाब पाकिस्तान ) मे हुआ था। गुरु नानक देव जी का नाम ऐसा है जिसे बहुत श्रद्धा ओर स्नेह के साथ लिया जाता है भारत में सिख पंथ का अपना एक पवित्र एवं अनुपम स्थान है गुरुनानक देव जी ने अपने समय के भारतीय समाज में व्याप्त कुप्रथाओं, अंधविश्वासों, जर्जर रूढ़ियों और पाखण्डों को दूर करते हुए। उन्होंने प्रेम, सेवा, परिश्रम, परोपकार और भाई-चारे की नीव पर सिख धर्म की स्थापना की। एक उदारवादी दृष्टिकोण से गुरुनानक देव ने सभी धर्मों की अच्छाइयों को समाहित किया। उनका मुख्य उपदेश था कि ईश्वर एक है, उसी ने सबको बनाया है। हिन्दू मुसलमान सभी एक ही ईश्वर की संतान हैं और ईश्वर के लिए सभी समान हैं। उन्होंने यह भी बताया है कि ईश्वर सत्य है और मनुष्य को अच्छे कार्य करने चाहिए  सिख धर्म का धार्मिक ग्रंथ श्री गुरु ग्रंथ साहिब है” ( इसमे 974 शब्द 19 रागों मे) गुरबाणी मे शामिल हैं  और सिख धर्म के धार्मिक स्थल को “गुरुद्वारा” कहा जाता है।

श्री गुरु नानक देव जी के बाद नौ गुरु हुए दसवें व आखिरी गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी हुए व इनके बाद गुरु की परंपरा समाप्त हो गयी श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने मुगलों के खिलाफ “ लड़ाका” फौज तैयार की जिसे “खालसा” के नाम से जाना जाता है । खालसा की स्थापना गुरु गोविंद सिंह जी ने 1699 को बैसाखी  वाले दिन आनंदपुर साहिब में की। इस दिन उन्होंने सर्वप्रथम पाँच प्यारों को अमृतपान करवा कर खालसा बनाया तथा तत्पश्चात् उन पाँच प्यारों के हाथों से स्वयं भी अमृतपान किया। सतगुरु गोबिंद सिंह ने खालसा महिमा में खालसा को "काल पुरख की फ़ौज" पद से निवाजा है। पाहुल संस्कार के बाद कोई भी व्यक्ति इसमे शामिल हो सकता था इसमे शामिल होने वाले पुरुष अपने नाम के साथ “सिंह” व महिलाएं कौर” लगाती थी। खालसा फौज मे जो भी शामिल होता था उसे पाँच “क” धारण करने अति आवश्यक थे जिनमे 1. केश, 2. कंघा, 3. कच्छा, 4. कड़ा, और 5. कृपाण.

सिखों के दस गुरु

श्री गुरु नानक देव जी- सिख धर्म के प्रवर्तक गुरुनानक देव का जन्म 15 अप्रैल, 1469 में हुआ था। यही वो स्थान है जहां सन् 1539 को गुरु नानक जी का देहांत हुआ था।

श्री गुरु अंगद देव जी- गुरु अंगद देव सिखों के दूसरे गुरु थे। गुरु नानक देव ने अपने खुद के दोनों पुत्रों को छोड़कर अंगद देव जी को अपना उत्तराधिकारी बनाने के लिए चुना था। इनका जन्म फिरोजपुर, पंजाब में 31 मार्च, 1504 को हुआ था।
श्री गुरु अमर दास जी- गुरु अंगद देव के बाद गुरु अमर दास सिखों के तीसरे गुरु बने। इन्होंने जाति प्रथा, ऊंच -नीच ,सती प्रथा जैसी समाज की कई कुरीतियों को खत्म करने में अपना अहम योगदान दिया था।

श्री गुरु रामदास जी- गुरु अमरदास के बाद गुरु रामदास सिखों के चौथे गुरु बने। उन्होंने 1577 ई . में अमृत सरोवर नाम के एक नगर की स्थापना की थी, जो आगे चलकर अमृतसर के नाम से प्रसिद्ध हुआ।     
      
श्री गुरु अर्जुन देव जी- गुरु अर्जुन देव सिखों के 5 वें गुरु हुए। उनका जन्म 15 अप्रैल, 1563 में हुआ था। सिखों के 5वें गुरु अर्जुन देव का बलिदान सबसे महान माना जाता है। उन्होंने अमृत सरोवर बनवाकर उसमें हरमंदिर साहब (स्वर्ण मंदिर ) का निर्माण करवाया। 

श्री गुरु हरगोबिन्द सिंह जी- गुरु हरगोबिन्द सिंह सिखों के छठे गुरु थे। यह सिखों के पांचवें गुरु अर्जुन देव के पुत्र थे। गुरु हरगोबिन्द सिंह ने ही सिखों को अस्त्र -शस्त्र का प्रशिक्षण लेने के लिए प्रेरित किया।

श्री गुरु हर राय जी- गुरु हर राय सिखों के 7वें गुरु थे। उनका जन्म 16 जनवरी, 1630 ई . में पंजाब में हुआ था।

श्री गुरु हरकिशन साहिब जी- गुरु हरकिशन साहिब सिखों के आठवें गुरु थे। इनका जन्म 7 जुलाई, 1656 को किरतपुर साहेब में हुआ था। इन्हें बहुत छोटी उम्र में ही गद्दी प्राप्त हो गई थी।        

श्री गुरु तेग बहादुर सिंह जी- गुरु तेग बहादुर सिंह का जन्म 18 अप्रैल, 1621 को पंजाब के अमृतसर नगर में हुआ था। वह सिखों के नौवें गुरु थे। गुरु तेग बहादर सिंह ने धर्म की रक्षा और धार्मिक स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व त्याग दिया था। जिसकी वजह से वो हिन्द की चादर भी कहलाए। 24 नवंबर 1675 को धर्म की रक्षा करते हुए गुरु तेग बहादुर सिंह जी का देहांत हो गया । औरंगजेब ने उनका शीश काटकर चाँदनी चौक पट लटका दिया था ।   

श्री गोविंद सिंह जी- गुरु गोबिन्द सिंह का जन्म पटना मे हुआ था उनको 9 वर्ष की उम्र में गुरु गद्दी मिली थी। उस समय देश पर मुगलों का शासन था। उन्होंने अपने पिता का बदला लेने के लिए तलवार हाथ में उठाई थी। बाद में गुरु गोबिन्द सिंह ने गुरु प्रथा समाप्त कर गुरु ग्रंथ साहिब को ही एकमात्र गुरु मान लिया।

चार साहिबजादे
शिखों के दशम गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी के चार सुपुत्रों को चार साहिबजादे कहा जाता है
साहिबजादा अजीत सिंह-  चमकौर के युद्ध मैं यह महान वीर अतुलनीय वीरता का प्रदर्शन करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। मात्र 17 वर्ष की उम्र में शहीद हो गए। इनके नाम पर पंजाब के मोहाली शहर का नाम साहिबजादा अजित सिंह नगर किया गया।
जुझार सिंह - जुझार सिंह श्री गुरु गोविंद सिंह जी के दूसरे थे जो की अपने बड़े भाई अजित सिंह की मृत्यु के बाद उन्होने मोर्चा संभाला व वह भी अपनी अतुलनीय वीरता का प्रदर्शन करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।

जोरावर सिंह- ये श्री गुरु गोविंद सिंह जी के तीसरे पुत्र थे जो की उनके ही एक सेवक के विश्वासघात के कारण सरहिंद के नवाब वजीर खान ने उन्हें बंदी बना लिया गय़ा तथा बाद में जीवित ही दीवार में चिनवा दिया।

फतेह सिंह- फतेहसिंह श्री गुरु गोविंद सिंह जी के चतुर्थ पुत्र थे इन्हें भी इनके बड़े भाई ज़ोरावर सिंह सहित सरहिंद के नवाब वजीर खान द्वारा बंदी बना लिया गय़ा तथा बाद में जीवित ही दीवार में चिनवा दिया गया।
                                                              
"एक ओंकार सतनाम" ओंकार शब्द में ही ईश्वर है सिख धर्म का मानना है कि ईश्वर एक ही और सभी धर्म उसी ईश्वर की विभिन्न रूपों में आराधना करते हैं। सिख धर्म के लोग सेवा करने को ईश्वर की पूजा समान मानते हैं जहां पर सभी भेदभाव मिटाकर सभी लोगों के लिए चाहे वो किसी भी धर्म-जाति, अमीर-गरीब सबके लिए गुरुद्वारे मे “लंगर” (भंडारा) लगाया जाता है
लोहड़ी सिखों का प्रमुख त्यौहार है जो मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाता है। सिख धर्म का मूल मंत्र “इक्क ओन्कार सत नाम करता पुरख निरभऊ निरवैर अकाल मूरत अजूनी सैभं गुर प्रसाद” है जिसका अर्थ है की ईश्वर एक है जिसका नाम सत्य है, कीर्तिमान पुरुष जो दोष रहित है, स्वछ छवि वाला,जो स्वयं से उत्पन्न हुआ है ( जिसका जन्म नही हुआ हो ) जो गुरु की कृपा से प्राप्त हुआ हो.

इस्लाम धर्म


इस्लाम शब्द अरबी भाषा से लिया गया है जिसका अर्थ होता है आत्म समर्पण और इस प्रकार मुसलमान वह है, जिसने अपने आपको अल्लाह को समर्पित कर दिया. यानी कि इस्लाम धर्म के नियमों पर चलने लगा. इस्लाम धर्म का आधारभूत सिद्धांत अल्लाह को सर्वशक्तिमान, एकमात्र ईश्वर और जगत का पालक और हजरत मुहम्मद को उनका संदेशवाहक या पैगम्बर मानना है पैगंबर मुहम्मद ने कुरान की शिक्षाओं का उपदेश दिया. इस्लाम धर्म की शुरुआत भी अरबी भूमि से हुई। इस्लाम धर्म के प्रवर्तक हजरत मोहम्मद थे जिनका जन्म 570 ई. मे हुआ था उनका मानना है की अल्लाह एक है और मोहम्मद उसका पैगंबर है मोहम्मद 622 ई. मे मक्का से मदीना गए थे । इस यात्रा को हिजरत कहा जाता है वहाँ उन्होने सभी अरबवासियों को धर्म का पाठ पढ़ाया मोहम्मद ने एक सीधे – सादे धर्म को जन्म दिया. मक्का मे स्थित काबा को इस्लाम का पवित्र स्थल घोषित किया गया इस्लाम धर्म का धार्मिक ग्रंथ “कुरआन” है।

इस्लामों के अनुसार ईश्वर द्वारा दी गयी मनुष्य को यह अंतिम धार्मिक पुस्तक है मुसलमानों के उपासना करने के स्थल को मस्जिद कहते हैं। मस्जिद इस्लाम में केवल ईश्वर की प्रार्थना का ही केंद्र नहीं होता है बल्कि यहाँ पर मुस्लिम समुदाय के लोग विचारों का आदान प्रदान और अध्ययन भी करते हैं। मस्जिदों में अक्सर इस्लामी वास्तुकला के कई अद्भुत उदाहरण देखने को मिलते हैं। विश्व की सबसे बड़ी मस्जिद मक्का की मस्जिद अल हरम है। मुसलमानों का पवित्र स्थल काबा इसी मस्जिद में है। मदीना की मस्जिद अल नबवी और जेरूसलम की मस्जिद ए अक़सा भी इस्लाम में महत्वपूर्ण हैं।

·       प्रतिदिन पाँच वक़्त (फ़जर, जुहर, असर, मगरिब, इशा) नमाज़ पढ़ना
·       ज़रूरतमंदों को दान देना
·        रमज़ान के महीने में सूर्योदय के पहले से लेकर सूर्यास्त तक रोज़ा रखना
·      जीवन में कम से कम एक बार हज अर्थात् मक्का स्थित काबा की यात्रा  करना 
·      इस्लाम की रक्षा के लिए ज़िहाद (धर्मयुद्ध) करना।
·    हजरत मुहम्मद की मृत्यु के बाद इस्लाम शिया और सुन्नी दो पंथों में बंट गया सुन्नी उन्हें कहते हैं जो सुन्ना में विश्वास रखते हैं.


भारत में इस्लाम का आगमन  सन् 711 ईसवी में हुआ। प्राचीन काल से ही अरब और भारतीय उपमहाद्वीपों के बीच व्यापार संबंध अस्तित्व में रहा है। यहां तक कि पूर्व-इस्लामी युग में भी अरब व्यापारी मालाबार क्षेत्र में व्यापार करने आते थे, जो कि उन्हें दक्षिण पूर्व एशिया से जोड़ती थी। मुसलमानों के नागरिक जहाज को कुछ समुद्री लुटेरों ने बंधक बना लिया था. जिसे छुड़ाने की खातिर वो भारत आए. क्योंकि जिस जगह पर उनके पानी जहाज को बंधक बनाया गया था, वो जगह सिंध के राजा दाहिर के राज्य में आती थी. उस समय बगदाद के राजा बिन युसुफ़ ने एक नव युवक ( जिनकी उम्र मात्र 17 साल थी ) बिन कासिम को छोटी सेना के साथ राजा दाहिर से युद्ध के लिए भेजा.राजा दाहिर और बिन कासिम के बीच युद्ध हुआ और राजा दाहिर को हार का सामना करना पड़ा। बिन कासिम की अगुवाई में अरब सेना द्वारा सिंध प्रांत (वर्तमान में पाकिस्तान) पर विजय प्राप्त की गई। 

सिंध, उमय्यद खलीफा का पूर्वी प्रांत बन गया। इस तरह इस्लाम धर्म का भारत मे आगमन हुआ भारतीयों के साथ बिन कासिम का व्यवहार काफी अच्छा  था इसलिए सभी भारतीय उन्हे प्रेम करते थे। भारत मे सनातन (हिन्दू) धर्म के बाद सबसे प्रचलित धर्म इस्लाम ही है  मध्यकालीन भारत में हिन्दू - मुस्लिम संस्कृति के प्रथम तथा सबसे प्रमुख प्रतिनिधि अमीर खुसरो थे।
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सनातन धर्म


सनातन धर्म पृथ्वी के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक हैकुछ लोगों का मानना है की ब्रह्माविष्णुमहेश सहित अग्निआदित्यवायु और अंगिरा ने इस धर्म की स्थापना की कहे तो विष्णु से ब्रह्माब्रह्मा से 11 रुद्र, 11 प्रजापतियों और स्वायंभुव मनु के माध्यम से इस धर्म की स्थापना हुई। इस धर्म  के लोगों के उपासना स्थल को मन्दिर कहते हैं। यह अराधना और पूजा-अर्चना के लिए निश्चित की हुई जगह है। यानी जिस जगह किसी आराध्य देव के प्रति ध्यान या चिंतन किया जाए या वहां मूर्ति इत्यादि रखकर पूजा-अर्चना की जाए उसे मंदिर कहते हैं।  इस धर्म की धार्मिक ग्रंथ श्रीमद भगवत गीता है । हालाँकि इसके इतिहास के बारे में अनेक विद्वानों के अनेक मत हैं। आधुनिक इतिहासकार हड़प्पामेहरगढ़ आदि पुरातात्विक अन्वेषणों के आधार पर इस धर्म का इतिहास कुछ हज़ार वर्ष पुराना मानते हैं। जहाँ भारत की सिधु घाटी सभ्यता में हिन्दू धर्म के कई चिह्न मिलते हैं। इनमें एक अज्ञात मातृदेवी की मूर्तियाँ, भगवान शिव पशुपति जैसे देवता की मुद्राएँ,

शिवलिंगपीपल की पूजाइत्यादि प्रमुख हैं। इतिहासकारों के एक दृष्टिकोण के अनुसार इस सभ्यता के अन्त के दौरान मध्य एशिया से एक अन्य जाति का आगमन हुआजो स्वयं को आर्य कहते थे और संस्कृत नाम की एक हिन्दू यूरोपीय भाषा बोलते थे। एक अन्य दृष्टिकोण के अनुसार सिधु घाटी सभ्यता के लोग स्वयं ही आर्य थे और उनका मूलस्थान भारत ही था।  आर्यों की सभ्यता को वैदिक सभ्यता कहते हैं। पहले दृष्टिकोण के अनुसार लगभग 1700 ईसा पूर्व में आर्य अफ़्ग़ानिस्तानकश्मीरपंजाब और हरियाणा में बस गए। तभी से वो लोग अपने देवताओं को प्रसन्न करने के लिए वैदिक संस्कृत में मन्त्र रचने लगे। पहले चार वेद रचे गएजिनमें ऋग्वेद प्रथम था। उसके बाद उपनिषद जैसे ग्रन्थ आए। हिन्दू मान्यता के अनुसार वेदउपनिषद आदि ग्रन्थ अनादिनित्य हैंईश्वर की कृपा से अलग-अलग मन्त्रद्रष्टा ऋषियों को अलग-अलग ग्रन्थों का ज्ञान प्राप्त हुआ जिन्होंने फिर उन्हें लिपिबद्ध किया।  नये देवता और नये दर्शन उभरे। इस तरह आधुनिक हिन्दू धर्म का जन्म हुआ। दूसरे दृष्टिकोण के अनुसार हिन्दू धर्म का मूल कदाचित सिंधु सरस्वती परम्परा ( जिसका स्रोत मेहरगढ़ की 6400 ई.पू. संस्कृति में मिलता है ) से भी पहले की भारतीय परम्परा में है।  


सिन्धु नदी के पार के वासियो को ईरानवासी हिन्दू कहते थे, जो '' का उच्चारण '' करते थे। उनकी देखा-देखी अरब हमलावर भी भारतवासियों को हिन्दू और उनके धर्म को हिन्दू धर्म कहने लगे।  वैदिक काल में भारतीय धर्म के लिये 'सनातन धर्म' का नाम मिलता है। 'सनातन' का अर्थ है 'हमेशा बना रहने वाला', अर्थात् जिसका न आदि है न अन्त। धर्म मूलत: भारतीय धर्म है, जो किसी ज़माने में पूरे भारत तक व्याप्त रहा है। प्राचीन काल में भारतीय सनातन धर्म में पाँच सम्प्रदाय होते थे। गणेश की, विष्णु की, शिव की, शक्ति की और सूर्य की पूजा आराधना किया करते थे। पर यह मान्यता थी कि सब एक ही सत्य की व्याख्या हैं। यह न केवल ऋग्वेद परन्तु रामायण और महाभारत जैसे लोकप्रिय ग्रन्थों में भी स्पष्ट रूप से कहा गया है। प्रत्येक सम्प्रदाय के समर्थक अपने देवता को दूसरे सम्प्रदायों के देवता से बड़ा समझते थे और इस कारण से उनमें वैमनस्य बना रहता था। एकता बनाए रखने के उद्देश्य से धर्मगुरुओं ने लोगों को यह शिक्षा देना आरम्भ किया कि सभी देवता समान हैं, विष्णु, शिव और शक्ति आदि देवी-देवता परस्पर एक दूसरे के भी भक्त हैं। उनकी इन शिक्षाओं से तीनों सम्प्रदायों में मेल हुआ और सनातन धर्म की उत्पत्ति हुई। सनातन धर्म में विष्णु, शिव और शक्ति को समान माना गया और तीनों ही सम्प्रदाय के समर्थक इस धर्म को मानने लगे।


सनातन धर्म का सारा साहित्य वेद, पुराण, श्रुति, स्मृतियाँ, उपनिषद्, रामायण, महाभारत, गीता आदि संस्कृत भाषा में रचा गया है।    कालान्तर में भारतवर्ष में मुसलमान शासन हो जाने के कारण देवभाषा संस्कृत का ह्रास हो गया तथा सनातन धर्म की अवनति होने लगी। इस स्थिति को सुधारने के लिये विद्वान संत तुलसीदास ने प्रचलित भाषा में धार्मिक साहित्य की रचना करके सनातन धर्म की रक्षा की

महर्षि मनु ने कहा है               

श्रूयतां धर्म सर्वस्वं श्रुत्वा चैव अनुवर्त्यताम्।

आत्मनः प्रतिकूलानिपरेषां न समाचरेत् ॥ 
धर्म का सर्वस्व क्या हैसुनो और सुनकर उस पर चलो !अपने को जो अच्छा न लगेवैसा आचरण दूसरे के साथ नही करना चाहिये।
आकाशवायुजलअग्निऔर पृथ्वी यह सभी सत्य की श्रेणी मे आते हैं ये अपना रूप बदलते हैं पर कभी समाप्त नहीं होते। धर्मअर्थकाममोक्ष इन सभी मे मोक्ष अंतिम है सत कर्मसच्चाई के मार्ग पर चलने ही मोक्ष की प्राप्ति होती है। जन्म और मृत्यु सिर्फ मिथ्या है मोक्ष ही सत्य है। अन्य सभी तो तब तक रहते हैं जब तक मोक्ष न प्राप्त न हो। यही सनातन धर्म का सत्य है.

ईसाई धर्म

ईसाई धर्म के प्रवर्तक ईसा मसीह थे इनका जन्म बेथलहम मे हुआ था इनके अन्य नाम जैसे जीजस क्राइस्ट , यीशु मसीह थे . इनकी माता का नाम मरियम ( ...